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क्या Santa Claus सच में है ?

 बचपन की वो राह आसान थी जिसमें सब घुल मिल जाते थे, एक पतली सड़क थी पर, कितने दोस्त साथ चल पड़ते थे । क्या तेरा क्या मेरा ? पहले सब कुछ सब का था होता, आज मिलने के लिए भी "रुको, पहले एक कॉल कर लेता" । याद आती उस Santa Claus की आज,  वो जैसे हो अलादीन का चिराग, बिन बुलाए ही आ जाता जैसे वो सबके घर, न पूछे न कहने पर भी, घर हमारा वो देता अपनी खुशियों की झोली से भर| वक़्त वो फिर से वापस ला दो Santa , जिसमे न लगे कोई औपचारिकता ना हो कोई भी झिझक, मन जब करे तो कह दूं "भाभी, आज बना दो पनीर मटर" और भाई से खुलके कह दूं "आज नही यार फिर कभी चल" । Santa, तुम हो या नहीं, ये कैसे समझूँ मैं, था बचपन ही प्यारा, जब ना होती कोई समझ, इसीलिए तुम नन्हों की दुनिया के हो नायक जैसे बाहुबली,  और बड़ों के लिए शायद बस हो एक किरदार ख्याली ।